फागुन मेला: पारंपरिक नृत्य कर मनी नाच मांडनी

दंतेवाड़ा, 7 मार्च। दंतेवाड़ा जिले के वार्षिक महापर्व फागुन मेला में पारंपरिक गतिविधियों का व्यवस्थित आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान प्रत्येक दिवस ग्राम देवी - देवताओं का आगमन हो रहा है। सभी देवी - देवता फागुन मेले में शामिल होने प्रतिवर्ष पहुंचते हैं। इसी क्रम में मेले के तृतीय दिवस पारंपरिक नाच मांडनी रस्म की गई। इसमें डोली वापसी के बाद साड़ी से ढकी हुई चांवल एवं चंदन की लकड़ी को दो टोकरी में भण्डारी एवं तुड़पा (सेवादार) लेकर रात्रि 10 बजे मोहरी बाजा की थाप पर बारह लंकवार, पडिहार, मांझी-चालकी एवं सेवादार मेंढक़ा डोबरा मैदान के देव विश्राम मंदिर में जाते है। जहाँ मोहरी बाजा की थाप पर कलार एवं कुम्हार समाज सदस्यों द्वारा मंदिर की आंगन में नृत्य किया जाता है। जिसके बाद उक्त टोकरियों को लेकर मंदिर वापस पहुंचते हैं। मंदिर के आंगन में भी पुन: कलार एवं कुम्हार समाज के सदस्यों द्वारा नृत्य किया जाता है। अंत में टोकरी में रखे चावल को बाजा वादकों में वितरण किया जाता है। इसके उपरांत कार्यक्रम का समापन किया जाता है। इसके साथ ही चौथे दिन लम्हामार कार्यक्रम आयोजित होगी।

फागुन मेला: पारंपरिक नृत्य कर मनी नाच मांडनी
दंतेवाड़ा, 7 मार्च। दंतेवाड़ा जिले के वार्षिक महापर्व फागुन मेला में पारंपरिक गतिविधियों का व्यवस्थित आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान प्रत्येक दिवस ग्राम देवी - देवताओं का आगमन हो रहा है। सभी देवी - देवता फागुन मेले में शामिल होने प्रतिवर्ष पहुंचते हैं। इसी क्रम में मेले के तृतीय दिवस पारंपरिक नाच मांडनी रस्म की गई। इसमें डोली वापसी के बाद साड़ी से ढकी हुई चांवल एवं चंदन की लकड़ी को दो टोकरी में भण्डारी एवं तुड़पा (सेवादार) लेकर रात्रि 10 बजे मोहरी बाजा की थाप पर बारह लंकवार, पडिहार, मांझी-चालकी एवं सेवादार मेंढक़ा डोबरा मैदान के देव विश्राम मंदिर में जाते है। जहाँ मोहरी बाजा की थाप पर कलार एवं कुम्हार समाज सदस्यों द्वारा मंदिर की आंगन में नृत्य किया जाता है। जिसके बाद उक्त टोकरियों को लेकर मंदिर वापस पहुंचते हैं। मंदिर के आंगन में भी पुन: कलार एवं कुम्हार समाज के सदस्यों द्वारा नृत्य किया जाता है। अंत में टोकरी में रखे चावल को बाजा वादकों में वितरण किया जाता है। इसके उपरांत कार्यक्रम का समापन किया जाता है। इसके साथ ही चौथे दिन लम्हामार कार्यक्रम आयोजित होगी।